MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

अध्याय - 3

सामाजिक स्तरीकरण का परिप्रेक्ष्य

(Perspective of Social Stratification)

 

प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।

उत्तर -

सामाजिक स्तरीकरण का संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण

मेलविन एम० ट्यूमिन ने शक्ति, सम्पत्ति, सामाजिक मूल्यांकन और मानसिक संतोष (लाभ) की असमानता के आधार पर किसी सामाजिक समूह या समाज को पदों के सोपान में व्यवस्था को सामाजिक स्तरीकरण का नाम दिया है। किसी भी समाज में प्राय: शक्ति, सम्पत्ति (वर्ग) और सामाजिक मूल्यांकन (प्रस्थिति और प्रतिष्ठा), पद/स्थान अत्यधिक आधार माने जाते हैं। मेक्स वेबर के अनुसार 'वर्ग, प्रस्थिति और पार्टी, अर्थात् आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक, समाज की तीन महत्वपूर्ण व्यवस्थायें / रचनायें हैं, जिनके द्वारा पद - स्थानों, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का वितरण किया जाता है। इसी प्रकार, टालकटं पार्सन्स का भी सामाजिक स्तरीकरण से अभिप्रायः उन व्यक्तियों के विभेदी श्रेणीकरण से है, जिनसे एक सामाजिक व्यवस्था निर्मित होती है। उन व्यक्तियों को, सामाजिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण सन्दर्भों में, एक-दूसरे से श्रेष्ठ और कमजोर समझा जाता है। पार्सन्स ने सतर्कता से 'स्तरीकरण' और 'विभेदीकरण' में अन्तर किया है, क्योंकि कसौटियां भी 'सामाजिक' और 'गैर- सामाजिक', क्रमश: विभाजित की गई हैं। एक सामाजिक व्यवस्था में इकाइयों के विभेदीय मूल्यांकन का आधार सामाजिक कसौटियाँ हैं। ये कसौटियाँ हैं--नातेदारी, व्यक्ति विशेष की विशेषतायें, उपलब्धियाँ, व्यवस्था, सत्ता, शक्ति आदि। गैर-सामाजिक कसौटियाँ मात्र विभेदीकरण का आधार हैं। आयु और यौन (लिंग) ऐसे आधार हैं। इस प्रकार पार्सन्स अनुसार, स्तरीकरण इकाइयों के रूप में व्यक्तियों (मानव) के मानकी (प्रवृत्ति) का मुख्य पहलू है।

पार्सन्स की तरह, कारे सालासतोगा ने "विभेदीकरण" और 'स्वर में अन्तर नहीं किया है। सामाजिक अन्तरक्रिया की प्रक्रिया द्वारा, व्यक्तियों, साया समूहों के बीच जो भी अन्तर उभरते हैं, उनको सालासतोगा ने "सामाजिक "सामाजिक विभेदीकरण" का नाम दिया है। वास्तव में, यह दृष्टिकोण के बजाय और पार्सन्स द्वारा दी गई परिभाषाओं से बहुत भिन्न नहीं है। सालासतोगा की तरह,कभी मत है कि स्तरीकरण सामाजिक अन्तरक्रिया की प्रक्रिया से भी उभरता है। फिर भी, सालासतोगा स्तरीकरण को परिभाषित करने में अधिक नपे-तुले व स्पष्ट हैं। साल लगा के अनुसार, विभेदीकरण के चार प्रमुख प्रकार हैं-

(1) प्रकार्यात्मक विभेदीकरण या श्रम विभाजन,
(2) श्रेणी विभेदीकरण,
(3) प्रथा विभेदीकरण और
(4) प्रतियोगीय विभेदीकरण।

सालासतोगा के अनुसार, श्रेणी विभेदीकरण का अभिप्राय स्तरीकरण - विभेदीकृत प्रस्थिति, या स्तरीकृत समूह, संगठन, या समाज से है। श्रेणी विभेदीकरण का अभिप्राय स्तरीकरण- विभेदीकृत प्रस्थिति, या स्तरीकृत समूह, संगठन या समाज से है। श्रेणी विभेदीकरण सभी मानव समाजों और बहुत से पशु समाजों में विद्यमान है। सालासतोगा ने श्रेणी विभेदीकरण और सोपान में विभेद नहीं किया है। उनके अनुसार, सोपान एक स्थिर प्रघटना है, और विशेष सुविधाओं के बंटवारे के लिये वितरण व्यवस्था का कार्य करता है। इस प्रकार सोपान द्वारा, सोपान और असमान वितरण अधिक दृढ़ होता है और इससे असमानता का चक्र जटिल बनता है।

समाज के सुसंचालन के लिये प्रकार्यात्मक विभेदीकरण या श्रम का विभाजन एक वांछनीय आवश्यकता है। एक मानव समाज की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रकार्यात्मक विभाजन के साथ गैर-विरोधात्मक श्रेणियों की रचना की जा सकती है। प्रथा विभेदीकरण का अभिप्राय उन नियमों से है, जिनके द्वारा विभेदीय उचित व्यवहार स्थापित किया जा सकता है। प्रतियोगीय विभेदीकरण का प्रयोजन सामान्य या एक विशेष सन्दर्भ में समाज के सदस्यों के रूप में व्यक्तियों की सफलता और असफलता से है। इस प्रकार, श्रेणी विभेदीकरण ही, व्यक्तियों, सामाजिक पदों / स्थानों, समूहों और यहाँ तक कि समाजों पर लागू होता है और इसीलिये यह सर्वव्याप्त है। पार्सन्स की तरह सालासतोगा भी स्तरीकरण की जैविकीय और समाजशास्त्रीय व्याख्याओं का उल्लेख करते हैं। जैविकीय व्याख्याओं में समय और स्थान और स्तरीकरण में भिन्नता जैसे कारकों को नकारा जाता है। समाजशास्त्रीय व्याख्या में व्यक्तियों और समूहों के बीच में सहयोग और द्वंद्व दोनों पर बल दिया जाता है।

पी०ए० सोरोकिन ने स्तरीकरण की एक विस्तृत परिभाषा दी है। सोरोकिन के अनुसार सामाजिक स्तरीकरण का तात्पर्य एक निश्चित जनसंख्या के विभेदीकरण से है, जिसमें सोपानीयता से वर्ग, एक-दूसरे के साथ व्यवस्थित किये गये हैं। उच्च व निम्न स्तरों के अस्तित्व से यह प्रकट होता है। इस प्रकार, स्तरीकरण का आशय एक विशिष्ट समाज के सदस्यों के बीच अधिकारों और विशेष सुविधाओं, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों, सामाजिक मूल्यों और दिदी विचारों, सामाजिक शक्ति और प्रभावों के असमान वितरण से है। सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न और अनेक स्पष्ट स्वरूप हैं। उदाहरण के लिये, आर्थिक रूप से स्वीकृत, राजनीतिक दृष्टि से स्तरीकृत, और व्यवसाय के आधार पर स्तरीकृत स्वरूप प्रमुख हैं। ये सभी एक-दूसरे से अन्तर्संबंधित हैं।

उपरोक्त सामाजिक स्तरीकरण के अवधारणाकरण, आधुनिक उदार पश्चिमी दुनिया में व्याप्त पस्थिति विभेदों पर लागू होते हैं, जो पूँजीवाद द्वारा वशीभूत हैं। वास्तविकता तो यह है कि गैर- "श्चिमी दुनिया उसी तरह की औद्योगिक और पूँजीवादी शक्ति नहीं है। हमारी मान्यता है कि श्रम विभाजन या एक जैसी क्रियाओं की आवश्यकता या प्रकार्यता की एकरूपता सब समाजों में सही नहीं हो सकती। इसलिये, उपरोक्त उपगम के अन्तर्गत, स्तरीकरण की भाय सर्वव्यापकता और प्रकार्यता के विषय में एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण है पर औद्योगिक ( आदिम) समाजों में सामाजिक स्तरीकरण के विश्लेषण के बारे में एम०जो स्मिथ का कहना है कि "स्तरीकरण कभी भी विभिन्न पद स्थानों के मात्र अस्तित्व या उन पर स्थापित होने पर नहीं पाया जाता है, बल्कि स्तरीकरण उन सिद्धान्तों में पाया जाता है जिनके द्वारा पहुँच और अवसरों का वितरण नियंत्रित होता है।" स्मिथ के अनुसार, पर- औद्योगिक समाजों में आयु-पूँज और यौन ( लिंगभेद), साधनों तक पहुँच व अवसरों के लिये प्रमुख निर्धारक हैं। आयु और यौन भेद मात्र जैविकीय कसौटियाँ नहीं हैं। पर- औद्योगिक समाजों में, आयु और यौन सामाजिक और सांस्कृतिक प्रघटनायें हैं। पारसन्स और सालासतोगा ने इनको मात्र जैविकीय या गैर-सामाजिक कसौटियाँ करार दिया है। जैविकीय आधार पर राजनीतिक शक्ति को वैधता दी जा सकती है, क्योंकि बुजुर्गों को युवा लोगों और महिला सदस्यों को नजरअंदाज करके अपने समुदायों में नेतृत्व प्रदान करने का अवसर प्राप्त होता है। विश्लेषणिक और साकार संरचनाओं या सदस्य इकाइयों और सामाजिक प्रक्रिया के सामान्यकृत पहलुओं की तरह, स्मिथ ने स्तरीकरण की विश्लेषणिक अवधारणाओं का उल्लेख किया है। विश्लेषणात्मक दृष्टि से, टयूमिन और पार्सन्स जैसे प्रकार्यवादियों ने स्तरीकरण को सभी सामाजिक व्यवस्थाओं की एक निराकार आवश्यकता माना है। साकारिक दृष्टि से, स्तरीकरण विशिष्ट समाजों से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार स्मिथ के अनुसार स्तरीकरण प्रक्रिया और प्रस्थितियों की स्थिति दोनों है। भारत में सामाजिक स्तरीकरण की प्रवृत्तियों की व्याख्या में योगेन्द्र सिंह ने स्तरीकरण को सिद्धांत, संरचना और प्रक्रिया के प्ररिप्रेक्ष्य में समझा है। सिंह का यह भी मत है कि प्रक्रिया अन्य दो बिन्दुओं, अर्थात् सिद्धान्त और संरचना से अधिक आधारभूत है। स्मिथ के अनुसार, प्रस्थितियों की अवस्था सामाजिक प्रक्रिया का परिणाम व अवस्था दोनों हैं।

स्मिथ द्वारा की गई व्याख्या बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके मत में एक समाज में संस्थाकरण और समूहों / इकाइयों के बीच सामाजिक सम्बन्धों का आधार है। दूसरे शब्दों में, क्रमशः आकस्मिकता और झगड़ा एक श्रेणीकरण व्यवस्था के आधार कतई नहीं बन सकतें। इसलिये, संरचनात्मक सिद्धांतों द्वारा एक सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था की प्रकृति व कार्यविधि निर्धारित होती है। वर्तमान लाभ के वितरण ( वितरण की प्रक्रियायें) संरचनात्मक सिद्धान्तों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। संरचना की अवधारणा द्वारा इन सिद्धान्तों (वितरणों) और उनके समायोगों की पहचान सुलभ होती है। संरचनात्मक परिवर्तन का अभिप्राय संरचनात्मक इकाइयों, अर्थात् प्रस्थितियों में परिवर्तनों या आंशिक बदलावों से है। इस प्रकार, स्तरीकरण का अभिप्राय मात्र श्रेणीकृत सोपान से नहीं है, बल्कि, विभिन्न प्रस्थिति परतों मंु समानरूपी गुणवत्ता से भी है, लेकिन समरूपता 'स्थिर' व्यवस्थाओं और जाति व्यवस्थाओं में नहीं पाई जा सकती। असमानता और स्तरीकरण एक सीमा तक एक-दूसरे से भिन्न हैं। स्तरीकरण सामान्यतया मानकीय - रचित सिद्धान्तों और मूल्यों पर आधारित है, जबकि असमानता की उत्पत्ति वंशावलियों और आयु-पुंजों जैसी पूर्व-निर्धारित स्थिर व्यवस्थाओं में दिखाई देती है। सामाजिक गैर-बराबरी के स्रोतों को आधार मान कर, स्तरीकरण और असमानता में भेद किया जा सकता है, या दूसरे शब्दों में, आधुनिक औद्योगिक समाजों और पर- औद्योगिक समाजों में अन्तर कर सकते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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